अंधेरे के ख़िलाफ
*******************सबकी अपनी अपनी है लड़ाइयाँ
अंधेरे के ख़िलाफ
सबने बना रखें है अपने अपने मोर्चे
माँ बिस्तर पर बुदबुदाती
है प्रार्थनाएँ
पिता दबाकर सोते है टार्च
दोस्तों ले रखी है बीमा पालसियाँ
भाई ने जमा कर रखा है सोना
पत्नी ने रट रखे हैं इमर्जेन्सी
नंबर
मैंने भी डायरी में सहेज
रखे हैं कुछ नाम पते
फिर भी जीत ही जाये
अंधियारा
तो याद कर रखी हैं कुछ
कविताएँ
सब कुछ लील जाये अंधियारा
तब भी बची रहती हैं
कविताएँ
क्योंकि वे होती हैं
अंधेरे की समझ से बाहर
इसीलिये होती है उसकी
पकड़से बाहर..|||
इन्साफ
वे जंगल की घुटी
हुई चीखे थी
वे झुग्गी की
दबी हुई आहें थी
उन्होंने सुना
कि इन्साफ का कोई मंदिर है
वे राजपथ तक
उसकी तलाश में चली आयीं..
उन्होंने कानून
की जंजीर हिलाई...
“थोड़ा इंतज़ार करो..” दरवाजे के पीछे से कोई
चिल्लाया...
इंतज़ार करते
हुये उन्होंने जाना कि
“इन्साफ के लिए इंतज़ार एक यातना है ...नाइंसाफी से भी भयावह”
वे इंतज़ार की
यातना में वापस लौट गयीं |
ख़ुफ़िया खबर है
कि
उन्होंने जंगल
में कही कुछ सुलग रहा है |
आँसू..
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मेरी जाँ..
वो आँसू
जो आँख की कोर पर ठहरा है
उसे अभी कुछ देर और ठहरे रहने दो ..
कि वो थरथराता है तो थरथराता है महाकाल |
सुनो .. अभी धरती तैयार हो रही है
कि जब तुम आँसू बोओगी
तो अँगार लहलहा उठेंगे
..|||
चीख
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वो चीख जो तुम्हारे हलक में अटक गयी है ..
और कुछ देर उसे बाँधे रखो ...
कि उसे वापस मत लौटने देना |
तुम्हारे पड़ोस में आवाज का एक समंदर है
कि जिसे जगने के लिए ...
तुम्हारी चीख का इंतज़ार है ....|||
वे लौटेंगे
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पोखर
में पानी नहीं रहा
तो ऐसा नहीं कि मछलियाँ नहीं रहीं |
पेड़
में पत्ते नहीं बचे
तो ऐसा नहीं कि परिंदे नहीं बचे |
तुमने
जो बस्तियाँ उजाड़ दी
तो लोग उजड़े ज़रूर , मगर खत्म नहीं हुये |
कल
बारिश के साथ
मछलियाँ लौट आयेंगी
पत्ते
लौट आयेंगे
परिंदे लौट आयेंगे
...और वे भी जिन्हें उजाड़ दिया गया था |
पर
इस बार वे टिड्डी दल की शक्ल में लौटेंगे
सब कुछ चट करते हुये ||
आज
तुमने जिनके साथ न्याय नहीं किया
कल उनसे न्याय की उम्मीद मत करना ||||
जुर्म और सज़ा
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मेरी सज़ा मुकर्र हो चुकी है
ज़ल्लाद ने अपनी मूँछ तेल से भिगो ली है
मेरा जुर्म था कि मेरी जेब से कुछ सवाल ज़ब्त
हुए थे |
हालाँकि
सवालों को उछालने लायक हिम्मत उन्हें बरामद नहीं हुई |
इसलिए
मेरी सज़ा में कुछ नरमी बरती गयी
मुझे
चौराहे पर संग सार नहीं किया जायेगा ,
मुझे
एक आरामदेह मौत मारा जायेगा |
..... साथियों जाते हुए मैं ये सवाल तुम्हारे नाम
वसीयत करता हूँ
तुम्हें पता है
जब कोई सवाल उछाला जाता है
तो खिड़कियों के काँच नहीं टूटते
एक सन्नाटा टूटता है
और ये भरम भी कि
हम कभी कुछ नहीं तोड़ सकते |||
हम फूल हैं भटकटैया के
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किसी गमले के गुलाम नहीं
बंधुआ नहीं किसी बागीचे के
गेंदा गुलाब जूही सेवंती
हम नहीं राग जै जैवन्ती
हम पगडंडियों के आज़ाद
मुसाफिर हैं
हम फूल हैं भटकटैया के
....|
भू
के भीतर का जब ईंधन चुक जायेगा
हम
गति का ईधन बन जायेंगे ....
कोई
फ़रियाद नहीं जीवन रण में ....
हम
बचे रहेंगे हर मुश्किल क्षण में
सर्वहारा
हैं पर
कभी नहीं हारे हैं ....
हम
फूल हैं भटकटैया के ....|...
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