9.03.2012

लाल रंग


मैं चाहूँ भी तो कैसे छोड़ दूँ लाल रंग को
जो दौड़ता है रगो में
और  जिससे कोशिकाओं से मिलता है जीवन
जो किसान की आँखों में दमकता है फसल के घर आने पर
और मजूरी कमाकर घर लौटते मजूर की थकान में गीत बन कर फूटता है
जानता हूँ जब शहर भर गया हो छुट्टा साड़ों से
लाल रंग के साथ सड़क पर निकलना बेहद खतरनाक है
यहाँ तक कि आप घरों के भीतर भी महफूज़ नहीं है
पर किस खोह में जाकर छिप रहूँ
किस हिमालय में करूँ  आत्म मुक्ति का तप |
कहाँ से लाऊं वो हथेलियाँ जो छिपा सकें शर्म से लाल चेहरा.....
साथियों...
ऐसे आपद समय में जब निरापद नहीं है लाल रंग के साथ जीना
तो बेहतर है मरा जाए लाल रंग के साथ
जब आसमान भर गया हो काली उदासी से
ये ख्याल कितनी राहत से भर देता है
कि पौ फटते आसमान में खिल उठा है लाल रंग
जिसकी हथेली में बच्चियां खेल रही हैं लंगडी बिल्लस
उनके भविष्य के लिए सबसे अच्छा निवेश है  कि  
मैं अपने  पसीने  और आंसू से  
लाल रंग  को बनाता रहूँ गाढ़ा और गाढ़ा ....

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