जो दौड़ता है रगो
में
और जिससे कोशिकाओं से मिलता है जीवन
जो किसान की आँखों
में दमकता है फसल के घर आने पर
और मजूरी कमाकर घर
लौटते मजूर की थकान में गीत बन कर फूटता है
जानता हूँ जब शहर
भर गया हो छुट्टा साड़ों से
लाल रंग के साथ सड़क
पर निकलना बेहद खतरनाक है
यहाँ तक कि आप घरों
के भीतर भी महफूज़ नहीं है
पर किस खोह में जाकर
छिप रहूँ
किस हिमालय में करूँ
आत्म मुक्ति का तप |
कहाँ से लाऊं वो
हथेलियाँ जो छिपा सकें शर्म से लाल चेहरा.....
साथियों...
ऐसे आपद समय में
जब निरापद नहीं है लाल रंग के साथ जीना
तो बेहतर है मरा
जाए लाल रंग के साथ
जब आसमान भर गया
हो काली उदासी से
ये ख्याल कितनी राहत
से भर देता है
कि पौ फटते आसमान
में खिल उठा है लाल रंग
जिसकी हथेली में
बच्चियां खेल रही हैं लंगडी बिल्लस
उनके भविष्य के लिए
सबसे अच्छा निवेश है कि
मैं अपने पसीने और
आंसू से
लाल रंग को बनाता रहूँ गाढ़ा और गाढ़ा ....
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