1.17.2019

पतंग और सरसों

पतंग 
++++++
1)
अक्सर 
हम सारी उम्र 
उस पतंग को उड़ाने में
गंवा देते हैं
जिसकी डोर हमारे हाथों में नही होती ।
2)
पतंग कब की कट चुकी
पतंग कब की लुट चुकी
लोग हैं कि
अब भी
फड़फड़ा रहे हैं
इधर उधर अटके
यहाँ वहाँ लटके ।।
3)
एक दिन उनका
जो पतंग थे
हवा के संग उड़ चले
सब दिन हमारे
हम जो परिन्दे थे
हवा को दम दे चले ।।।
4)
रकीब में कहाँ दम था
कि हमसे पेंच लड़ाता
ये तो हमारा हबीब था
कि जिसका दिल रखने को
हम आप ही अपनी पतंग काट गये ।।।।
5)
पतंग कटने के बाद
बड़ी देर तक
डोर हाथ मे लिए
मै सोचता रहा
पतंग को भी परिंदा होना था
हाथ से निकल जाने के बाद भी
उम्मीद बनी रहती
कभी तो पलट कर इधर आना होगा ....


सरसों 
+++++
१)
फूली है सरसों 
धरती की उम्मीद की तरह 
तू मेरी मिट्टी में शामिल है
नमी और खुशबू की तरह ....
२)
सरसों
चिठ्ठी है ...सजनी
कि शीत से कंपकपाती
मौसम की देह को
उष्णआलिंगन में भरने
बसंत ....
बस आ ही रहा है ||
३)
राधा रानी
ये रंग तुम्हारी मेहनत का
कि खेत -खेत पियराई सरसों
सर्र सर्र सरसाई सरसों
सरसों के इस पीताम्बर में
मन कान्हा कान्हा हो गया
ये हवा बजाती बंशी है
इस राग-रागनी में
मन सन्यासी
अनुरागी तेरा हो गया ..||
४)
तनी और फूली सरसों से
ढंका हुआ है सारा संसार
कि सरसों के भीतर से
आ रही है कुछ खुसर फुसर
फिर रुक रुक कर
दबी दबी खिलखिलाने की आवाज़
शायद
'पाश' के रूमान का
'बच्चन' के रोमांस से
हो रहा है मेल
लेकिन हमें क्या ..?
चाहे बनाओ राई का पहाड़
चाहे राई का निकालो तेल ..||

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