2.22.2019

सावधान ! कार्य प्रगति पर है

सावधान ! कार्य प्रगति पर है
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मित्रों
मै प्रगतिशील हूँ..सच्ची मुच्ची ..
प्रगतिशील कवियों की लिस्ट में बाबा नागार्जुन की तरह मेरा नाम भी गायब हो | लेकिन बाबा नागर्जुन की तरह किसी हिमालय की यात्रा पर जाकर मै प्रगतिशील नहीं हुआ , बल्कि मुझे प्रगतिशील बनाने में मेरे मोहल्ले की सड़क और नगर निगम का पूरा हाथ पाँव है | स्कूल जाना शुरू किया था तो सड़क पर कार्य प्रगति पर था... कालेज जाना शुरू किया तो कार्य प्रगति पर था ...इन सड़को पर चलने वाले रोलर की तरह मेरे पड़ोस में अंकल थे जिन्हें डर के मारे मै अंकल जी कहता था जब अपनी तीसरी औलाद की तैयारी में बीबी को नर्सिंग होम ले जा रहे थे ..सड़क महारानी की कृपा से उनका नर्सिंग होम का खर्चा बच गया ..तब इस महा प्रसाद के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए उन्होंने अपनी नोनी का नाम ही 'प्रगति' रख दिया |
कालान्तर में प्रगति एक खाऊ इंजिनियर की भेंट चढ़ गयी और अपने परिवार के विरोध के बाबजूद भी प्रगति करते करते आज दो शैतान बच्चो की मां हैं |
प्रगति की तरह ही इन सडकों पर चलते चलते मै भी कब प्रगतिशील हो गया ..पता ही नहीं चला | सड़को की इस प्रगति ने नौजवानी में भी मेरे चरित्र की रक्षा में अहम् योगदान दिया | रात को मुझे लड़कियों के स्थान पर इन्ही सडकों के सपने आये और दिन में जब इनसे गुजरता तो धूल के पाउडर और फेसपेक के चलते चलता फिरता प्रेत नज़र आता | अब प्रेत के चरित्र के आगे तो कोई चुनौती पेश करने से रहा ..
लेकिन अपनी तमाम कोशिश के बाद मेरी खोपड़ी में मै ये बात नहीं घुसी कि कार्य प्रगति पर है के पहले ' सावधान ' लिखने की जरूरत क्या रहती है ? सावधान तो करना चाहिए जब कार्य दुर्गति पर हो लेकिन यहाँ ही नहीं सारे देश में उल्टा चलन है देश में दंगा हो ..आफिस में भ्रष्टाचार हो ... पड़ोसी जातिवाद के जहर से मरा जा रहा हो वहां कोई सावधान का संकेत नहीं मिलेगा ..शायद प्रगति के साथ ये सावधान गलती से ऐसे ही चिपक गया जैसे कप्तान साहब की पुलसिया नौकरी के साथ उनका हस्तरेखा का शौक |
बात को फिर सड़क पर लौटाते हुए कहूँगा कि सड़क के साथ उसकी जोड़ीदार नाली का भी पुण्य स्मरण जरूरी हो जाता है |
सड़क के बाद नाली आती है और जब नाली आती है सड़क नहीं रह जाती | प्रसाद जैसा कहते हैं कि जब समझदारी आती है यौवन चला जाता है | सड़क यौवन है नाली समझदारी है |
ये दार्शनिक सत्य आप हमारे हिस्से की फोर लेन को देखकर समझ सकते हैं |
रो रो कर एक -डेढ़ बरस में किसी तरह चलने लायक हुई तो अब उसे नाली के लिए फिर से खोदना शुरू कर दिया गया है | कमबख्त इधर दो महीने से सड़क पर जाम की आदत छूट गयी थी सो अब फिर से आदत डालने में दर्द हो रहा है लेकिन हमे तसल्ली इसी बात की है कि कार्य प्रगति पर है ..और प्रगति प्रकृति का नियम है |
हमारे देश की सड़के जीवन का शाश्वत सत्य इतनी सहजता से समझा देती हैं कि मुझे लगता है हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने जीवन के ब्रह्म सत्य का साक्षात्कार किसी खोह कन्दरा में नहीं ऎसी ही सड़क पर बैठ कर किया होगा |
हम जगद्गुरु हैं | हमारे देश से बड़े बड़े गुरु यूरोप और अमेरिका एक्सपोर्ट किये जाते रहे हैं .. बेहतर हो कि हम अपनी ये सड़के विदेशको एक्सपोर्ट करें ...आखिर प्रगति पर एक हमारा ही एकाधिकार क्यों हो ?
अंत में सड़क पर श्रद्धांजली स्वरूप इतना जरुर कहूँगा
" तुम्हारी चाल टेढ़ी गड्डे और भी गज़ब
रोलर कोस्टर का मज़ा मुफ्त में मिला "
( चित्र आज तिलहरी ,जबलपुर मंडला फोर लेन
.. )

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