नींद
वे जुगनू कहाँ चमकते
जिनका संसार पलकों
के बंद होने पर खुलता है
नीद
ना होती तो
कहाँ थकान
बेखबर करती आराम
दिन किस ठंडी गहराई
में नहाकर
तरो ताज़ा होकर निकलता काम पर
तरो ताज़ा होकर निकलता
नीद
ना होती तो कैसे
जगता सृष्टि में जीवन
नीद को बचाने की
ज़द्दोज़हद में
नीद उड़ गयी है हमारे
समय में .....
हनुमंत किशोर
No comments:
Post a Comment