8.17.2012

नीद


नींद
ना होती तो सपने कहाँ तोडते अपनी अंगडाई  
वे जुगनू कहाँ  चमकते
जिनका संसार पलकों के बंद होने पर खुलता है
नीद
ना होती  तो 
कहाँ थकान बेखबर करती आराम
दिन किस ठंडी गहराई में नहाकर
तरो ताज़ा होकर  निकलता काम पर
नीद
ना होती तो कैसे जगता सृष्टि में जीवन
नीद को बचाने की ज़द्दोज़हद में
नीद उड़ गयी है हमारे समय में .....
                                                                       हनुमंत किशोर 


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