पाँव…..
मॅंड मार्वल पर नही
तुम रखती हो इन्हे खुरदुरी पथरीली ज़मीन पर
तुम्हारे चेहरे से नहीं
तुम्हारे पाँवो से खुलते हैं
तुम्हारी ज़िंदगी के राज़
जब कभी ज़िंदगी पे प्यार आता है
तुम्हारे पाँवो को चूमने का जी होता है बहुत
..इन्हे देखकर ही समझ आता है
कि समय की शिला पर चेहरे नही,
बल्कि पाँव दर्ज़ होते हैं क्यों?
और कैसे कुछ चेहरों की कागज़ी खूबसूरती के लिये
क्यों बेहद बदसूरत होना पड़ता है कई कई पाँवों को ?
और कैसे कुछ चेहरों की कागज़ी खूबसूरती के लिये
क्यों बेहद बदसूरत होना पड़ता है कई कई पाँवों को ?
इनसे मिलती हैं मौसम की सब निशानदेही |
जैसे बिवाइयों की दरारों में छिपा होता है ठिठुरता माघ
और अँगुलियों के बीच ग़लती चमड़ी
गवाही देती है रसोई में घुसे बारिश के पानी की.. | |
फूटते हैं जब पाँवों के छाले तो
कुछ तो ठंडा जाती होगी
जेठ में धरती की तवे सी तपती पीठ |
फूटते हैं जब पाँवों के छाले तो
कुछ तो ठंडा जाती होगी
जेठ में धरती की तवे सी तपती पीठ |
तुम्हारे पाँव असमाप्त कविताएँ हैं
यहाँ पड़ाव बस एक ही है जिसे मौत कहते हैं...
तुम्हारे पाँवो के जरिये कुदरत मौत का विलोम रचती है ....
मज़ाक में न लो इसे तो कहूँ
मज़ाक में न लो इसे तो कहूँ
ज़िंदगी पे जब भी प्यार आता है
इन्हे चूमने को जी होता है बहुत |||
हनुमंत
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बैशाखियाँ...
ग़लत कहते हैं लोग
कि इंसान को अपनी टाँगों पर खड़ा होना चाहिये,
बैशाखियों पर नहीं..
लोग ही रख देते हैं पालने में बैसाखियाँ
अपनी टाँगों पर खड़ा होना चाहता है जब बच्चा
थमा दी जाती हैं उसे बैशाखियाँ..
बैशाखी कब टाँग में, टाँग कब बैशाखी में बदल जाती है
पता ही नही चलता
चलते फिरते उठते बैठते सोते जागते
बैशाखी ही थामे रहती है उम्र भर
यहाँ तक की मरने के बाद बने मंदिरों में भी
पाँवों की जगह वे ही पूजी जाती हैं
जैसे बगैर लिबास के इंसान पागल क़रार दिया जायेगा
वैसे ही बगैर बैशाखी के बौना और लंगड़ा
वैसे ठीक ही है
बैशाखियों के साथ
टाँगो की तरह बीमार या बूढ़े होने का ख़तरा नही है..
सुविधनुसार बदला भी जा सकता है उन्हे…
स्वर्ण खचित
रत्न जडित
मंत्र पूरित बैशाखियाँ ही चतुष्टप पुरुषार्थ है अब
सबसे महान उँचाई पर स्थित मूर्तियाँ
बैशाखियों पर ही टिकी हैं
हनुमंत
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