दोहेनुमा
बहता दरिया वक़्त का कच्ची मिट्टी के रंग
घुल घुल सारे बह गये शून्य रह गया संग........
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बहते बहते बह गये अनुभवसारे बीत
ध्वस्त किनारे रह गये रह गये गूंगे गीत.....
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सुख के हंसा पाहुणे उड़गये दूर बिदेस
दुख के गिद्धा अपने रहे जनम भर शेष…
चमड़ी दमडी का ज़ोर है बाकी सब कमजोर
चकॅरी चल गयी ठीक है वरना खीस निपोर....
खाये वीयग्रा पियै पेप्सी देह हुई सब धाम
सुविधा सुख को लील गयी दाम खा गया राम
इंटर इंटरनेट है... पसरा भूमि आकाश
इन्फो होकर रह गये आँसू स्मितहास..
जीवन डेली नमक की चिंता जल की धार
जमते ही लो सिमट गया अपना कारोबार..
धोखा दे गये इंद्र सब खड़ी फसल गयी सूख
लगी कलेजा काटने संग महाजन भूख.....
नगदीनगदीबँट गया जो भी पाया प्यार
और उम्र के खाते में विरहा रहा उधार....
पूंजीवाद की खेती में समाजवाद की खाद
राजनीति लंपट हुई प्रजातन्त्र बरबाद....
हनुमंत
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