4.09.2012

बैशाखियाँ..



              बैशाखियाँ...
जिन्होंने  कहा कि मुझे  अपने पैरों  पर खड़ा होना चाहिये,
उन्होंने ही मेरे पालने में बैशाखियाँ रख दीं |
बैशाखी कब पैर में  में, और पैर कब बैशाखी में बदल गये 
पता ही नही चला ..|

चलते फिरते उठते बैठते सोते जागते
बैशाखी ही थामे रही  उम्र भर
यहाँ तक की मरने के बाद बने मंदिर में भी
पाँवों की जगह वे ही पूजी जाती रहीं ....

एक मै ही नहीं सारा शहर बैशाखियों पर खड़ा था ..
अपने पैरों पर खड़े होना धर्मद्रोह था 

वैसे ये भी  ठीक ही रहा ...
पैरों की तरह कमजोर  या बूढ़े होने का ख़तरा बैशाखियों के साथ नही था ..
उन्हे…सुविधनुसार बदला भी जा सकता था  
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स्वर्ण खचित
रत्न जडित
मंत्र पूरित बैशाखियाँ ही चतुष्टप  पुरुषार्थ है अब
सबसे महान उँचाई पर स्थित मूर्तियाँ
बैशाखियों पर ही टिकी हैं
                                    

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