ओ आम की कैरियों
मेरी बालकनी में झांकती
तुम्हे देखता हूँ तो मेरे
भीतर एक वृक्ष लहलहा उठता है
तुम मेरी पुत्रियाँ हो मेरे कंधो मेरी बाँहों में झूलती
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तुम्हारी खट्ट मीठ से दुपहर की लू में भी
घर मनसाइन हो जाता है |
तुम्हारी खट्ट मीठ से दुपहर की लू में भी
घर मनसाइन हो जाता है |
ओ आम की कैरियों
तुम्हारा गदराया हरापन मुझे ऊँगली पकड़ ले जाता है मेरे आँगन
जहाँ सिलबट्टे पर माँ पूरे जतन से बूंक रही है चटनी
नमक मिर्च के संग तुम्हारा
हो रहा है नया जन्म
बैर्रा की रोटी के ऊपर जब तुम धर दी जाती हो...
स्वर्ग में देवताओं की चू जाती है लार तब |
स्वर्ग में देवताओं की चू जाती है लार तब |
ओ आम की कैरियों
सुग्गा जब उल्टा लटक चोंच से चूमता है तुम्हे
मुझे भी याद आता है प्रथम अभिसार
तुम्हारी गंध से बौराई कोयल
जब इशारे करती है प्रेमी को
जब इशारे करती है प्रेमी को
जेठ की सूखी तलैया में उतर आता है भादों का पानी..|
ओ आम की कैरियों
तुम्हारे गुरुकुल में शामिल होकर मुझे भी सीखना है वो कमाल
ओ आम की कैरियों
तुम्हारे गुरुकुल में शामिल होकर मुझे भी सीखना है वो कमाल
कि कैसे कसैला हरापन
पहुंचाता है
मीठे और रसीले पीलेपन तक
ओ आम की कैरियों
तुम से पिछवाड़े की दीवार में खिडकी ही नही खुलती
आगे की बंद गली में रास्ता भी खुलता है
ज़िन्दगी जब जब बेस्वाद लगती है तुम्हे याद कर लेता हूँ..|||
हनुमंत
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