मुखौटे
लूट उतनी भयावह नही थी
जितना की दान
हिंसा उतनी बुरी नहीथी
जितनी दया
फासिस्त था वो प्रेम
जो प्रतिदान माँगता था
सौदा थी वो श्रदा
जिसमे छुपी थी प्रतिफल की वासना
बदसूरती ने खूबसूरत मुखौटेएपहन रखे थे
उजाले लिबास के नीचे रिश्तो ने अपना नंगापनछुपा रखा था
हे ईश्वर तूने मुझे
यह किस स्वर्ग में डाल रखा था
हनुमंत
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