रास्ते.
.जहाँ पर ख़त्म होते हैं रास्ते
, दरअसल वहाँ से शुरू होते हैं रास्ते
,मुसाफिर लाख चिल्लाता हो रोतो हो
,कुछ नही कहते नही सुनते हैं रास्ते
,हैं बेजुबान पर हैं बड़े ही किस्सागो
,निशानो के मिस कहानी कहते हैं रास्ते
,पहुँचे जो कभी किसी ठोर तक
,बिन रुके चल देते हैं रास्ते,
वो गुनहगार था जो लिख गया,
यहाँ से आगे नहीं जाते हैं रास्ते
,सोने की जंजीर खोने का डरथा
,वो खड़ा था और पुकारते थे रास्ते,
रात की आँखो में ज़रा झाँको तो सही,
सुबह के जानिब फूटते है रास्ते
हनुमंत
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