5.06.2012

माँ


                           माँ


धरती की सिसकियों में होगी  माँ
माँ ही गूंजेगा
जब आकाश कि आँख  टपकेगा  आँसू
ईश्वर और शैतान दोनों ने
बराबर पुकारेगें उसे
सबकी सुनेगी माँ
माँ की नही सुनेगा कोई |
नियमित अंतराल पर
ज्वार की तरह आयेंगे पिता
भीगे हुए को और  भिगोकर 
लौट जायेंगे पिता
फिर तट पर सहेजती रहेगी
शंख और सीपियाँ माँ |
मौसम दर मौसम
आयेंगे परदेशी बच्चे
और मौसम के पलटने से पहले ही
लौट जायेंगे बच्चे
अपनी अधूरी लोरियों को थामे  
जाते हुए रास्ते को टकटकी बांधे
देर तक निहारती होगी माँ |
गाते बजाते रोते हँसते आयेंगे और भी स्नेही परिजन
ले जायेंगे फूल पत्ती छाया
ना  होगा कुछ तो लुटाती रहेगी
आँचल भर भर आशीष माँ |
फलदार रहने तक  सहती रही पत्थर
छायादार रहने पर बीट
अब सूख जाने पर
सहेगी आघात कुल्हाडियों के
बनेगी ईंधन पकायेगी  भात |
धरती ,गाय, नदी ,पेड़
कितने ही नाम और रूप में
जियेगी और मरेगी माँ
माँ के लिए नहीं जियेगा कोई |
                                     हनुमंत 

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