8.18.2013

अतुल्य भारत




अतुल्य भारत !!!!!
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किसी न्यूज़ चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ नही है यह
ना ही ‘ नयी दुनिया संभव है’ का गरमागरम मंच..
मेरे शहर के ओवर ब्रिज के नीचे...
कचरे का दानवी ठीहा है यह
जिसमे बजबजाती बच्चियाँ अपनी ज़िंदगी बिन रही हैं..|
कचरे के डमफर को आते हुए देखकर
उनकी आँखों में वही चमक होती है
जो भूखे की आँखों में होती है
पकवान से सजी थाली को देखकर...|
एक सिरे से दूसरे सिरे को खंगालती
कचरे के ठीहे में वे लिपट लिथड जाती हैं
माँ के स्तनों को झींझोड़ता
जैसे लिथड़ जाता है भूखा बच्चा..|
कचरे का यह ठीहा
इन बच्चियों का मदरसा है,घर है , म.न.रे.गा. है
तीर्थ है ,मुक्तिधाम है...
संविधान प्रदत्त जीने का अधिकार है...|
अगर सभी आश्वासन हिंद महासागर में फेंक दिये जाय
तो भी बहुत है अगर हर नागरिक के पास कचरे का एक ठीहा हो..|
ठीहे के उपर विशाल होर्डिंग है ‘अतुल्य भारत’ की
जिसमे प्रोटीन विटामिन से लबालब अश्लील मुस्कान चू रही है
'इनक्रेडिबल इंडिया देट इज अतुल्य भारत
हम खाये पिए अघाये लोग
भारत को एक कचरा संपन्न गणराज बनाने के लिये कृत संकल्प हैं..'
कचरे के ठीहे के ऊपर ओवर ब्रिज पर
सनसनाती कारे हैं एक मिनट में ३७ ..
लगभग उतनी ही दूसरी तरफ से भी
ब्रिज पर सिर्फ कारें है
जीवित चीजें सिर्फ होर्डिंग पर नज़र आती हैं ..
सच कहते हैं प्रो सहस्त्र बुद्धि
'ये दुनिया एक रेस है
यदि तुम तेज नहीं दौड़ोगे तो
कोई दूसरा तुम्हे कुचलकर आगे बढ़ जायेगा |'
ओवर ब्रिज के नीचे एक रेस है
ओवर ब्रिज पर एक रेस है |
रेस नहीं एक छलाँग है
अँधेरे से अँधेरे में अँधेरे के लिए ....
कोई सहस्त्र बुद्धि बतायेगा कि कैसे छलाँग लगा सकती हैं
कचरे वाली बच्चियाँ ओवर ब्रिज पर ???...
या कैसे मै ही छलाँग लगा सकता हूँ ऐसी किसी जगह पर
जहाँ किसी कचरे में बजबजाती बच्चियाँ ना हो ???
लेकिन अभी तो ये कचरे का ठीहा
शहर की सुदर्शन देह पर बदसूरत कूबड़ की तरह बढ़ता जाता है..
जब भी देखता हूँ
इसे काटकर कुत्तों को खिला देने का मन करता है |||

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