1.01.2017

जंगल (jungle) और विकास

जंगल 
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तब 
तुम ऋषि थे 
अब 
तुम देशी विदेशी निवेशक हो

तब
तुम्हारी रक्षा के लिए राजपुत्र थे
अब
सेना है पुलिस है प्रशासन है

तब
तुम जंगल में
यज्ञ शाळा स्थापित कर
बनवासी सत्ता को
राज सत्ता से विस्थापित कर देते थे
अब
तुम्हारे सौमुखी संयंत्र
जंगल से हमें खदेड़कर
जंगल को
तुम्हारे खाते खतौनी में दर्ज़ कर रहे है |

तब
तुम हमें राक्षस कहते थे
अब
तुम हमें बागी ,भ्रमित , नक्सलाईट कहते हो

सवाल
तब भी वही था
सवाल
अब भी वही है
कोई भी बेटा
अपनी माँ की गोद को
लुटने नहीं दे सकता

हमारी गर्दन दबोचने केलिए
तुम्हें अपने खुनी पंजो में
और धार करनी पड़ेगी ||
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सभ्यता
जंगल की देह पर
घाव घरते रही
जंगल
सभ्यता की देह पर
मरहम धरते रहा
जंगल ना मूर्ख था ना मासूम
बस अपनी मसीहाई से मजबूर था ||
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"जंगल जैसे जैसे
कटते चले गये
लोग वैसे वैसे
जंगली होते गये ||



विकास 
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जिस बुलडोजर ने हमारी बस्तियां गिराई
वो मेड इन यू एस ए था 
लेकिन उसे हमारा ही हिन्दुस्तानी भाई चला रहा था |
हमसे कहा गया 
विकास बलिदान मांगता है
और इस विकास केबदले
हमें और हमारे बच्चों को स्वर्ग मिलेगा
लेकिन हमारे गले में बंजर भूखंड का पट्टा डालकर
हमें चोक संडास के नरक में डाल दिया गया |
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महा संस्कृति का बल्लम चमकाते
पण्डे पुरोहितोंने हमेंबंधक बना लिया
हमसे हमारे तीज-त्यौहार
नाच-गाना
खाना-पीना
देव- दानव
सब छीनकर
हमारे गले में अपनी माला डाल दी |
हमारे
माथे पर तिलक जैसा
यह निशान जो आप देख रहे है
उनके त्रिशूल के दागने से बना है ||
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अनंत न्याय नहीं
अनन्त अन्याय जारी है
न्याय का यह बीज गणित
हमने अरुंधती राय से नहीं
अपने बाप-भाई-बच्चों को खोकर सीखा है|
जो समन्दर पार के मालिक के इशारे पर
बारूदी सुरंग में उतर गये |
हमारा कुसूर सिर्फ इतना था
कि
मालिक के दुश्मन की छाती पर
हमारे कबीले का टेटू गुदा था |||
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विकास
संस्कृति न्याय
जिन्हेंदेवदूत
बताया गया था
नकाबपोश
आतंकवादी निकले||

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