1.01.2017

लाल गुडहल और हमारे घरों की ओरते

लाल गुड़हल
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मेरी उम्मीदों की 
नब्ज़ डूब रही है 
मेरे सिरहाने लाल गुड़हल रख दो |
इसके पहले
कि मेरे सपनों का रंग
धूसर हो जाये
मेरे सिरहाने लाल गुड़हल रख दो |
इसके पहले
कि प्रियजन
भोगे हुए नर्क के बदले
पुरूस्कार में
किसी मरे हुए स्वर्ग की कामना में
प्रार्थना में झुक जायें
मेरे सिरहाने लाल गुड़हल रख दो |
इसके पहले
कि मै
अनंत कालिमा में बदल जाऊं
मेरे सिरहाने लाल गुड़हल रख दो ||


हमारे घरो की औरते 
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एक 
थकी हुई सुबह
एक 
ऊबी उदास दोपहर 
एक 
लिथड़ी हुई सांझ
एक
टूटकर बिखरी रात
कविता में
ना सुनना चाहे तो
सीधे-सीधे कहूँ
" हमारे घरों की औरतों | "

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