१)
सुनो ऋतंभरा ..
प्रेम और कविता और क्रान्ति
पकने दो
बार-बार मत झांको
अभी आग और धधकने दो
धीरज धरो,
तीनो ज़हर है
ज़रा भी कच्चे रह गये तो ||
प्रेम और कविता और क्रान्ति
पकने दो
बार-बार मत झांको
अभी आग और धधकने दो
धीरज धरो,
तीनो ज़हर है
ज़रा भी कच्चे रह गये तो ||
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