1.01.2017

सुनो ऋतम्भरा

१)
सुनो ऋतंभरा ..
प्रेम और कविता और क्रान्ति 
पकने दो 
बार-बार मत झांको 
अभी आग और धधकने दो 
धीरज धरो,
तीनो ज़हर है 
ज़रा भी कच्चे रह गये तो ||

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