12.30.2016

अशीर्षक और एब्सर्ड (absurd)

अशीर्षक
++++++
अशीर्षक
+++++++
उनके हाथ में छुरिया थी
खंजर थे 
तलवारें थी 
बल्लम और बंदूके थी |
उन्होंने मुझे चारो ओर से घेर लिया था
और
वे अट्टहास करते हुए नाचे जा रहे थे |
मेरे डर से आनन्दित होते वे
अपनी तलवार -खंजर-छुरिया चमकाते |
मेरा पसीना पोछते
मुझे दिलासा देते
और अपने नाखूनों से मेरे चेहरे पर लकीर खींच देते |

उनके मनोरंजन ने जब उन्हें थका दिया
तो उनमे से एक ने पूछा
हम मानवता वादी हैं या नहीं ?
हैं ..मै हकलाया ..
वे हँसे और ज़रा पीछे हट गए
दूसरे ने पूछा
हम निर्दयी हैं या दयालु ?
दयालु ... मैंने कहा .
वे इस बार जोर से हँसे और पीछे हट कर जाने को मुड़ गये
जाते हुए अचानक वे पलटे और एक साथ पूछा
हम आदमी हैं या जानवर ?
मुझे याद नहीं इस बार मैंने क्या कहा
लेकिन जो भी कहा, वे भद्दी गालियों के साथ मुझ पर टूट पड़े |
मरने से पहले मुझे इतना याद है कि वे अपने हथियारों से लहू पोछते हुए
चीखे जा रहे थे ..

हमारे देश में अधर्म-बेईमानी-झूठ-चापलूसी,के लिए 
कोई जगह नहीं है |||

एब्सर्ड
+++++++
१)
पेड़ों पर 
पत्तियों की जगह
मछलियाँ लटकी हुईं थीं ..
नदी के भीतर
मछलियों की जगह
पत्तियां मचल रही थीं ..
सब कुछ इतना एब्सर्ड था
कि पहचान पाना नामुमकिन
मै
ऐसे समय में जी रहा था
जिसकी शिनाख्त नहीं कर पा रहा था ||
२)
बड़ा एब्सर्ड समय था
मेरे बच्चों
सम्वेदना के उस भव्य समारोह में
सबने अपने थाल में सजा रखे थे नरमुंड
सबसे अधिक सुसज्जित नरमुंड
सबसे बड़े पुरूस्कार से हुआ सम्मानित ||हनु ||

No comments:

Post a Comment