तुम जीवन का अमर राग
तुमको ही गायेंगे
तुमको ही पायेंगे
जीवन की हर गति में ....
12.30.2016
घर : तीन कविताये
१) एक हम कि जो अपनी पीठ पर लादे फिरते हैं अपना घर एक वो कि जो खड़ा करता है अपना ताज महल हमारी बस्ती के सीने पर ..||
२) आज गोरया नहीं आई खिड़की पर कबूतर ने नही सताया गुटरगू कर बिल्ली ने नहीं जगाया कुछ गिराकर छिपकली मकड़ी चूहे रहे हड़ताल पर तुम्हारी याद ने नहीं रुलाया आ आकर हाय .. किसी संगी के बगैर कितना गैर लगा अपना ही घर ...||
३) उसने कहा रोटी -कपड़ा और मकान मैंने कहा रोटी-कपड़ा और घर वो नेता बन गया मै लेखक ...||हनुमंत किशोर ||
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