1.11.2013

dog of diogenes

दिओगेनेस का कुत्ता 
जाड़े की रोयेंदार धूप में
पसरा है दिओगेनेस का कुत्ता |
विश्व विजय को गया सिकंदर
लौटकर नहीं आया |
और ईमानदार आदमी की खोज में
अब तक भटक रहा है
दोपहर लालटेन लेकर निकला दिओगेनेस |
धूप स्नान करते कुत्ते की आँखों में
तैरती है विश्व विजय से संतुष्टि
और हौले से हिलती दुम से टपकता है ज्ञान रस |
तुमने नहीं जीतनी चाही दुनिया या  नहीं पाना चाहा जीवन सत्य ?
पूछने पर मीठी सी गुर्राहट के साथ कहता है कुत्ता ;
हड्डी ही तो चचोरना है दुनिया जीतकर,
और भईया...दोपहर की मीठी झपकी में ही मिल जाता है जीवन सत्य |
धूप में पसरे कुत्ते से इतनी ईर्ष्या हुई देवताओं को
कि स्वर्ग धुएँ से भर गया  |||||

No comments:

Post a Comment