दिओगेनेस का कुत्ता
जाड़े की रोयेंदार धूप में
विश्व विजय को गया सिकंदर
लौटकर नहीं आया |
और ईमानदार आदमी की खोज में
अब तक भटक रहा है
दोपहर लालटेन लेकर निकला दिओगेनेस |
धूप स्नान करते कुत्ते की आँखों में
तैरती है विश्व विजय से संतुष्टि
और हौले से हिलती दुम से टपकता है ज्ञान रस
|
“तुमने नहीं जीतनी चाही दुनिया या नहीं पाना चाहा जीवन सत्य ?”
पूछने पर मीठी सी गुर्राहट के साथ कहता है
कुत्ता ;
“हड्डी ही तो चचोरना है दुनिया जीतकर,
और भईया...दोपहर की मीठी झपकी में ही मिल
जाता है जीवन सत्य |”
धूप में पसरे कुत्ते से इतनी ईर्ष्या हुई
देवताओं को
कि स्वर्ग धुएँ से भर गया |||||
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