न्याय का देवता
बज रहें हैं शंख ,घंट –घड़ियाल
ज़मीन से तीन फुट उपर
मंचस्थ है न्याय का देवता
झुका हुआ माथ /
मुंदी हुई आँख
मुंदी हुई आँख
हाथ पाँव सिकोडे /
अपनी ही खोल में गोल गोल
अपनी ही खोल में गोल गोल
अनहद नाद में ब्रह्मलीन /
निरगुन निराकार
निरगुन निराकार
जगत गति से अव्याप्त /
क्रोध करुणा से निर्विकार
क्रोध करुणा से निर्विकार
अपने ही अंतरलोक में मगन मस्त
है
न्याय का देवता.....|
न्याय का देवता.....|
बज रहें हैं शंख ,घंट –घड़ियाल
हो रही है आरती
चालीसा.. जै जैकार
चालीसा.. जै जैकार
भक्त गण कर रहें हैं पाठ /
पुरोहित मंत्रोच्चार
पुरोहित मंत्रोच्चार
आचार्य कर रहें हैं टीका
जिसमे है जितनी श्रद्धा शक्ति
टीका उतनी ही सटीक है उसकी
उधर फाइलों में मकड़ियाँ बुन रही है
जाल
बुलडॉग बहा रहे हैं लार
कसाई तेज़ कर रहें है चाकुओं की धार
बाहर सजी हुई दुकानों में किश्तो में
कट रहा है न्याय
नीलामी में बिक रहा है न्याय
पर ना कुछ बुरा देखता
ना कुछ बुरा सुनता
ना कुछ बुरा बोलता
ना कुछ बुरा सुनता
ना कुछ बुरा बोलता
अपनी ही मस्ती में मगन मस्त है
न्याय का देवता..
न्याय का देवता..
ध्यान मुद्रा मे वह दे रहा है
साम्या, शुद्ध अंतः करण की सीख
साम्या, शुद्ध अंतः करण की सीख
कि अचानक कहीं से चीर जाती है कोई
चीख
बिखर जाता है ध्यान
उचट जाती है योग निद्रा
उचट जाती है योग निद्रा
जागना ही पड़ता है न्याया के देवता
को
धरा को अन्याय संतप्त पाकर
आँखो में उतार आता है खून
फड़कने लगती है भुजा
संभवतः अब होगा दीन हीन का त्राण /
नही बचेगें पापियों के प्राण
नही बचेगें पापियों के प्राण
खंड खंड होगें पाखंड युधिष्ठिरो के ...
भाँपकर मंतव्य
देखकर भवित्वय
पुरोहित कर देते हैं सारा प्रबंध
कातर भेड़े बाँध दी जाती हैं न्याय
की खूंटीयों से
मंत्रों की हुंकार मे घुट जाता है
भेड़ो का चीत्कार
नर्म नर्म भेडों का गर्म गर्म लहू
पीकर
स्वस्थ तन मुदित मन होता है न्याय का देवता
धरा घोषित कर दी जाती है पाप मुक्त
फहरा दी जाती है न्याय पताका
फिर मिटाने को अपनी देह की थकान
वह अंतःपुर को करता है प्रस्थान..
करते हुये प्रस्थान दे जाता है
निर्देश
अत्याचारी दुहराते रहें सदाचार का
पाठ
बलात्कारी हर स्त्री को समझें अपनी
माँ
राजमार्ग मिलता रहे गांधी मार्ग से
गोली और डंडे बने रहे देशभक्त जनसेवक
अंतःपुर से उसके दुबारा मंचस्थ होने
तक ||||
( चित्र: गूगल साभार )
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