3.04.2013

आँसू और चीख



आँसू..
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मेरी जाँ..
वो  आँसू
जो आँख की कोर पर ठहरा है
उसे अभी कुछ देर और ठहरे रहने दो ..
कि वो थरथराता है तो थरथराता है महाकाल |
सुनो .. अभी धरती तैयार हो रही है   
कि जब तुम आँसू बोओगी 
तो  अँगार लहलहा उठेंगे ..|||

चीख 
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वो चीख जो तुम्हारे हलक में अटक गयी है ..
और कुछ देर उसे बाँधे रखो ...
कि उसे वापस मत लौटने देना |
तुम्हारे पड़ोस में आवाज का एक समंदर है
कि जिसे   जगने के लिए ...
तुम्हारी चीख का इंतज़ार है ....|||


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