3.09.2013

स्त्री : कुछ ऋचाएँ

स्त्री : कुछ ऋचायें

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(१)
तुम नूह की वो नाव हो ,
प्रलय के बीच जिसने बचाया था बचे रहने का भरोसा |
तुम स्रोत हो पवित्रता का ,
और संरक्षिका हो कोमलतम की |
पृथ्वी पर कामधेनु हो ..
और अंतरिक्ष में थामने वाली बाँह...
धैर्य हो ,क्षमा हो
ओज हो, विप्लव हो |
हे स्त्री मेरी आकुल आत्मा में प्रवेश करो ,
देखो तो एक रेगिस्तान मनुष्य होने के लिए कब से छटपटा रहा है ..|||­
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(२)
शून्य आदि है  शून्य अंत
मध्य में गणित है साँस लेता हुआ  ...
तुम वो शून्य हो
जिसके लिए सारा गणित लालायित है ...|||

(३)
मेरे और शैतान के बीच
एक स्त्री खड़ी है
मुझे मनुष्य बने रहने देना हो
तो मेरे भीतर की स्त्री को मुझे बचा लेने दो  ...|||

(४)
हे ईश्वर...
मेरी प्रतीक्षा मत करना
मेरी मुक्ति के लिए
एक स्त्री का प्रेम ही पर्याप्त है |||


 ( चित्र : गूगल साभार)

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