अपेक्षा
हम दो और दो पाँच पढ़ते रहे
और अपनी क्लास में ही बने रहे |
तुमने दो और दो पाँच किया
और बुर्जुआ क्लास में जा
पहुँचे ||
उस पर बेशर्मी तो देखो ,
तुम फिर भी चाहते हो
हम तुम्हारे सज्दे में झुके
रहें ..||||
त्रासदी....
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यहाँ कभी कठौती
थी..
लोग पसीना बहाकर
उसमे डुबकी लगाते
और गंगा उतर आती
अब वहाँ
स्वीमिंग पूल है
जिसमे लोग इत्र
बहाकर डुबकी लगाते हैं
और वो गटर बन
जाता है ....
धर्नुधर...
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हे धर्नुधर....
सम्भावनाओं का
बीज
देखो ,खिलौने का चक्का भी
बिना बाहरी बल के नहीं
घूमता |||
फिर तुम तो
इतिहास
के रथ पर सवार हो ....|||.
धुआँ
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आग थी ,
जली और बुझ गयी
|
कमबख्त धुआँ है
कि अब भी आँखों
में भरा है ||||
मुआफ
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उसे अपने सच पर
गुमान था
और मुझे अपने सपने से मोहब्बत..|
उसके पत्थर से सच ने
मेरे काँच से सपने को तोड़
दिया
मैंने जिंदगी भर उसे मुआफ नहीं किया..|||||
प्रार्थना
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प्रार्थना में झुका मेरा
माथ
प्रायश्चित में झुका माथ है |
टूटकर गिरती हुई उल्का
केंद्र में
वापस स्थापित होना चाहती है|||
परदेश
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समन्दर में निकल आयी
‘हिलसा’याद करती है अपनी नदी |
जेठ में धरती याद करती है
अपना आषाढ़ |
जंगल में भटक गया छौना याद
करता है अपना झुण्ड |
चिठ्ठी याद करती है अपना
मिटा हुआ पता |
मेले में बच्चा याद करता है
छूटी हुई अंगुली |
परदेश में मै याद करता हूँ
अपना घर ||
इंतज़ार.....
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परत दर परत
इंतज़ार ज्यों ज्यों छिलता गया |
अपने में मसरूफ एक दर्द
त्यों त्यों उभरता गया ||
( चित्र गूगल साभार )
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