प्रलाप १ (निदेशक )
***********
एक प्रेत,
अर्धसत्य के स्तूप पर चक्कर लगाता है
लगातार
जब थक जाता है तो उद्दरण बडबडाने लगता है
लोग उसके ज्ञान पर संदेह ना करे
इसके लिए उसने रट रखी है एक भाषा
जो स्वदेशी दिखती हुई भी सर्वथा विदेशी है ..
लकीर से हटकर सोचना उसके लिए मूढ़ता है
सुना है वह किसी श्रद्धेय की पीठ पर सवार,
निदेशक है इन दिनों...|||
प्रलाप २ ( इम्तहान )
******************
अक्सर लगता है जिंदगी अपने इम्तहान के पर्चे
बच्चों से तैयार करवाती है
कारण उसके सवाल भी गुगली ही नहीं होते ,
पाठ्यक्रम से बाहर के भी होते हैं ..|
फिर भी जिंदगी के इम्तहान से डर नहीं लगता
कामयाब रहा तो चाहने वालों के साथ खुश हो रहूँगा
नाकामयाब रहा तो समय रहते सुधर जाऊँगा |||
( चित्र : जोहन जोर्गिंसों साभार गूगल )
No comments:
Post a Comment