झरती हुई पत्तियों ...
( इस कविता की पहली पंक्ति और आखरी पंक्ति के बीच ६५० कि.मी. का फासला है इसलिए कि ये पंक्तियाँ डायरी से निकलकर बार बार उड़ जाती थी और उनके पीछे भागकर उन्हें सहेजना होता था |कुछ पंक्तियाँ आज भी हवा में तैर रही हैं और मै उनके नीचे उतरने की राह देख रहा हूँ ..)
( penting : john jorgenson courtesy google)
( इस कविता की पहली पंक्ति और आखरी पंक्ति के बीच ६५० कि.मी. का फासला है इसलिए कि ये पंक्तियाँ डायरी से निकलकर बार बार उड़ जाती थी और उनके पीछे भागकर उन्हें सहेजना होता था |कुछ पंक्तियाँ आज भी हवा में तैर रही हैं और मै उनके नीचे उतरने की राह देख रहा हूँ ..)
जिसने झरती हुई पत्तियाँ नहीं देखी
उसने नहीं जाना कि
ऊपर उठना ही नहीं नीचे आना भी खूबसूरत होता
है |
झरती हुई पत्तियाँ “फ़्लाइंग किस” हैं ...
जो पेड़ों ने जाते हुए मौसम की तरफ उडाये हैं
|
मै इन्हें विरहन की चिठ्ठियाँ कहता हूँ
जो हवा में अपना मुकाम खोजते ज़मीन तक पहुँची हैं |
मै इन्हें विरहन की चिठ्ठियाँ कहता हूँ
जो हवा में अपना मुकाम खोजते ज़मीन तक पहुँची हैं |
झरती हुई पत्ती गिरती नहीं है...
वे हवा में तैरती हैं
और जब थक जाती है तो बस सुस्ताने को धरती पर टिक जाती है |
वे पैराशूट हैं जिन पर सवार होकर पेड़ नीचे
उतरता है |
हवा की बाहें उनका झूला हैं
और धरती का बिछौना उनकी गोद .....|
अपने पेड़ को चुपचाप अलविदा कहकर
वे अनजाने सफर पर निकल पड़ती है
कितनी अनासक्त हो जाती है
या बेरहम कि पलटकर एक नज़र भी नहीं देखती
इतनी स्थितप्रज्ञ क्या रही होगी किसी निर्वाण की लौ....
अपने पेड़ को चुपचाप अलविदा कहकर
वे अनजाने सफर पर निकल पड़ती है
कितनी अनासक्त हो जाती है
या बेरहम कि पलटकर एक नज़र भी नहीं देखती
इतनी स्थितप्रज्ञ क्या रही होगी किसी निर्वाण की लौ....
झरती हुई पत्तियों के बीच एकपागल ख्याल सर उठाता है
कि धरती का सब गुरुत्वाकर्षण खींचकर अंतरिक्ष
में फेक दिया जाए
ताकि पत्तियों के साथ तैरता रहे देशकाल ...
ओ हवा में तैरती हुई पत्तियों ..
अपनी शरण में बैठकर मुझे भी सीखने दो
गिरना बेखौप
पछतावे से मुक्त स्वीकार ....
पछतावे से मुक्त स्वीकार ....
ओ झरती हुई पत्तियों ..
तुम अकेले ही नहीं झरती ...
तुम्हारे साथ मेरा व्यर्थ भी झरता है
नये अर्थ के लिए अवकाश बनाता हुआ......
( penting : john jorgenson courtesy google)
बहुत सुंदर .....जिसने झरती हुई पत्तियाँ नहीं देखी
ReplyDeleteउसने नहीं जाना कि
ऊपर उठना ही नहीं नीचे आना भी खूबसूरत होता है |
झरती हुई पत्तियाँ “फ़्लाइंग किस” हैं ...
जो पेड़ों ने जाते हुए मौसम की तरफ उडाये हैं |
झरती हुई पत्ती गिरती नहीं है...
Nityanand Gayen ji shukriya
Deleteसुन्दर रचना हनुमंत जी यथार्थ-चित्रण है ..!!
ReplyDeleteओ झरती हुई पत्तियों ..
तुम अकेले ही नहीं झरती ...
तुम्हारे साथ मेरा व्यर्थ भी झरता है
नये अर्थ के लिए अवकाश बनाता हुआ.....
prasun pandey ji abhar
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