4.23.2013

मसीहा


मसीहा 
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मेरा मुल्क मसीहाओं का मारा है 
और मसीहा अपनी मसीहाई के मारे हैं 
वे खबर की सुर्ख़ियों के साथ घर से निकल पड़ते हैं ..
दिन हो या रात बाज़ार हो या गुसलखाना 
जो जहाँ मिलेगा वे उसे वहीँ सजा सुना देगे ...
वे घर में दस्तक देंगें
और ज़रा देर में लात मारकर दरवाज़ा तोड़ देंगें ...
उनके अपने ब्रांड हैं अपनी दुकान है
उसके बाहर सब सड़ा है फीका पकवान है |
अचार, पापड , मौसम ,कविता ,बाज़ार
अमेरिका ,तालिबान ,विज्ञान,युद्ध, व्यापार
राजनीति , पत्रकारिता, खेल ,सिनेमा
अगडम बगडम तीन तिकडम....
सबके लिए एक ही मन्त्र है ‘इति मम उवाच ..’
‘यह मै कहता हूँ’...
उनसे असहमत होने का अर्थ है बर्र के छत्ते में मुँह डाल देना |
वे जेक आफ आल यानी चालू भाषा में हरफन मौला हैं
बीरबल की खिचड़ी हैं बाल की खाल हैं |
एक मसीहा से मैंने कहा
‘मिया ये जख्मो पर मक्खियाँ भिनभिना रही हैं ...
कुछ करते क्यों नहीं ..?”
सुनना था कि मसीहाई भूलकर बदतमीजी पर उतर आया
बोला ‘तुम अंधे हो ये जख्म नहीं मसीहाई की निशानियाँ हैं ’..
मै प्रेत तो नहीं हूँ लेकिन मसीहाओं ने मुझे उल्टे पैर भागना सिखा दिया है ..
मसीहा पर मेरा यकीन भले ना हो
लेकिन मसीहों से भरी सड़क के किनारे बैठकर,
मै मसीहाओं से मुक्ति के लिए किसी मसीहा का इंतज़ार करता हूँ ||||

(चित्र बफेलो परेड गूगल साभार )

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