7.19.2013

आह्वान

आह्वान ..
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मेरे बच्चों तुम कैसे मरना पसंद करोगे ...
भूखे रहकर या जहरीला खाना खाकर ???? 
ओ नौनिहालों ...
तुम्हे चूम लेने दो मुझे जी भरकर 
ये दो बूँद जीवन की
जो मुस्कुराकर पिलायी जा रही है
कहीं ऐसा ना हो तुम्हारी जान ले ले..|
दवा में ज़हर / खाने में ज़हर / पानी में ज़हर /बातो में ज़हर /
जिन्दगी के इस सिरे से उस सिरे तक
एक ज़हरबाद आबाद है |
जिसमे साँस साँस घुट रही है
आँख खोलकर जीना दुश्वार है |
उम्मीद की कलियाँ सूखती जा रही है
सपनो की मरी हुई मछलियों की गंध                                                                                 
नथुनों में भर रही है ..|
मै पूरा जोर लगाकर ..
ज़हर के इस पौध को उखाड़ना चाहता हूँ
लेकिन पाता हूँ कि उसकी जड़े मेरे पांवो से लिपटी हैं ...
हारकर मुक्ति के लिये मै ईश्वर की गुहार लगाता हूँ
जानते हुये भी कि ज़हरबाद उसकी लाश पर ही पनपा है ....
ओ मेरी संततियों ...
ये ज़हर हमारी आत्मा तक उतरे
इसके पहले इसकी एक एक जड़ उखाड़ दो ...
पूर्वजो के लिये यही हमारा तर्पण होगा
और भविष्य के लिये यही हमारा दाय ||||


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