7.19.2013

मशविरा

मशविरा (१).
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वो बहुत बैचेन अहसास था ...                                                                                             
वो डोर का एक सिरा पकड़कर चढ़ने की कोशिश करता 
और जब उपर नहीं चढ़ पाता तो नीचे उतरने लगता ...
पकड़ने की कोशिश में अक्सर हाथ से फिसल जाता 
और कभी आप ही कहीं से फिसलकर गोद में आ गिरता ..                                                                       


सबसे खतरनाक बात यह थी कि 
वो जितने ठोस दिखता था 
उतना ही तरल था ...|
मैने खुद को मशविरा दिया
ये बच्चों के खेलने की चीज नहीं है
गलती से लग जाये तो खून निकल आता है ||
इस मशविरे ने मुझे तो अमर कर दिया
लेकिन मेरे भीतर का कुछ हमेशा के लिये मर गया |||


मशविरा(2)
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याद रखो ..
तुम समंदर के किनारे खड़े हो 
तो लहरें आयेंगी 
और तुम्हे भिगोकर लौट जायेंगी ....
तुम लहरों का लौटना रोक नहीं सकते |
और यदि उनके लौट जाने का गम बर्दाश्त भी नहीं कर सकते 
तो छाती पीटने से बेहतर है 
समन्दर से दूर हटकर खड़े हो जाओ ...|||

(painting courtesy: google ) 

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