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कोई नटवरलाल भी क्या ठगेगा
जिस तरह विचार ठग लेते हैं ...
पार उतरने के लिये ,
किनारे पर जिन विचारों की पूँछ पकड़ी थी ...
मंझधार में ,
वे विचार ही गोता लगा गये ..||
विचार २
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विचारों की छतरियाँ
बारिश के तेज़ होने के ठीक पहले ,
आंधी में उल्ट गयी...
खाली मूंठ को थामे
कोई नादान अब भी बौछारों से बचने के मुगालते में है ..|||
विचार ३
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वो विचार था कि सुनहरी मछली
पहली बार में ही बेहद लुभावना लगा था ...
फिर ठहरकर उसकी तहे खोलनी शुरू की
तो प्याज के छिलके की भांति
एक एक परत उतरती चली गयी ....
अंत में मेरे हासिल एक शून्य बचा था
और चौतरफा,
शब्दों के इधर उधर उड़ते भागते छिलके ..||||
( चित्र साभार गूगल )
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