7.19.2013

ख्याल

ख्याल 
_____________
जब ख्याल क़ातिल होता है 
तो गज़ब का मासूम होता है 
और अक्सर पाक भी ....
आहिस्ता आहिस्ता वो हर उस को बेदखल करता चलता है
जो उसकी राह में आता है
भरी दुपहरी एक काली आंधी आसमान घेरने लगती है .....
और अज़ाब के वक्त जब उस ख्याल की बिजली गिरती है
वजूद रुई के ढेर के मानिद सुलग उठता है
हर शै बेलिबास हो जाती है
हर तयशुदा बात बेमानी ....
वो क़ातिल ख्याल अमरबेल की तरह मेरे वजूद से लिपटा था ...
मै उससे गाफिल था उस तरह
जिस तरह साहिल तूफ़ान से
और ज़िन्दगी मौत से ....
मै सब कुछ हारकर बहुत जोर से हँसता हूँ
अब मेरे पास खोने के लिये ज़ंजीर भी नहीं है ......

No comments:

Post a Comment