7.19.2013

घर

घर ..
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घर ज़रुरी है सबके लिये,
जैसे चेहरा छुपाने के लिये जरूरी होती है हथेली 
सर छुपाने के लिये ज़रुरी होता है एक घर |
घर यदि ज़रूरत से ज्यादा बड़ा हो 
तो मकबरा हो जाता है |
और ज़रूरत से कम रह जाये तो ज़ेल |
वैसे क्या आपने देखे हैं कभी ऐसे बदनसीब भी
जो बड़े से घर के लिये ,
अपनी ज़रूरतों को बड़ा करने की फ़िराक में
होते जाते हैं रोज- रोज , तिल -तिल छोटे |
फिर एक दिन आप बरामद करते हैं उन्हें किसी कालीन के नीचे से |
यूँ तो हर घर में होनी चाहिये इतनी खूटियाँ
कि सभी परिजन टांग सकें उस पर अपनी थकान |
और होने चाहिये इतने नीम अँधेरे कोने
कि जागने पर जहाँ छुपकर याद किये जा सकें अधछूटे सपने |
वैसे जो घर आपके आने पर मुस्कुराये ना
और आपके जाने पर डबडबाये ना ...
उसे घर मत समझियेगा ,
अलबत्ता ,आपकी औकात के हिसाब से
वो ‘वेटिंग रूम’ हो सकता है ..
प्रथम श्रेणी ,द्वितीय श्रेणी या अनारक्षित |||

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