4.25.2014

आदम खोर और नरभक्षी cannibal ( communal// bigot // fascist// dictator)

‘आदम खोर’... 
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‘आदम खोर’..
पिछली बार चार टांगों पर चलकर बस्ती में घुसा 
बस्तीने उसे भगाने के लिए आग जलायी, 
तो ‘आदमखोर’ डरकर जंगल लौट गया...
‘आदमखोर' इस बार दो टांगों पर आया
इस बार उसके पास बातों के बताशे थे
और झूठ की चाशनी
बस्ती उसके झांसे में आ गयी
और बात ही बात में
‘आदमखोर’ ने बस्ती में आग लगा दी |||
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जब तुम्हें लहू और लहू में फर्क नज़र आने लगे
और जब तुम्हें दूसरे की गंध भी बर्दाश्त से बाहर हो जाए
जब तुम्हें दूसरे की मौत में मुनाफ़ा दिखाई देने लगे
और पड़ौसी के मासूम बच्चों में क़ातिल
समझना .....
तुम ‘आदमखोर’ हो चुके हो ...|||
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‘तुम्हें शर्म नहीं आती ..?
तुम आदमी होकर आदमखोर के साथ खड़े हो ???’
“इसमें शर्म कैसी...?
आदमखोर मेरे भाई को खायेगा ..
तभी तो मेरे हिस्से में मेरे भाई का “भात” आयेगा |”
' तो फिर तुम आदमी नहीं अहमक हो ,
आदमखोर की अगली खुराक तुम ही हो ||||'


२)हम और वे (नरभक्षी )
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हम 
लातिनी जंगलो में थे 
हम
अफ्रीकाई मरुस्थलों में
हम
एशियाई खेतों-देहातों में थे
हम
दो टांगो पर
चलते दौड़ते कीड़े थे ..|
हम
धरती पर बोझ थे
भविष्य का संकट थे |
हमारी भूख
हमारी बीमारी
हमारा रोना
हमारा गाना
सबका सब खतरा था |
वे धरती के पुत्र थे
वे धरती के मालिक थे
वे साथ समंदर पार
श्वेत भवन में थे
वे विश्व बैंक की तिजोरियों में थे
वे व्यापार की गोल टेबल के चौगिर्द थे |
पेरिस ,जेनेवा ,रियो से उठकर
वे
धरती को
नारों के त्रिशूल पर उछालते हुए
जंगल-खेत -देहात पर छा गये |
धुएं का डर दिखाकर
उन्होंने हमारे चूल्हे बुझा दिये
आसमानकी छतरी में छेद दिखाकर
उन्होंने हमारे जानवर
हलाक़ कर दिये
और हमारे खेतो को
मशीन के जबड़े में डाल दिया
हमारे बीज हमारी खेती
हमारी दुनिया सब लूटकर
वे अपनी यू एस वी
अपने जम्बो जेट पर सवार
लौट गये..||
सालो बाद
हमारे खेत
हमारे जंगल
हमारी बस्ती
अब उनके थे..|
आप ये जो धरती के नीचे बिल देख रहे हैं
हमारे घर है |
और वो जो ड्रोन आप देख रहे हैं
उनके बम वर्षक है |
वे सच कहते हैं
अब हम छापामार नर भक्षी हैं,
जो वो
इतिहास में
सदा से रहे हैं ||

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