4.25.2014

दूब//grass

दूब(पूर्वार्ध )
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दूब के ऊपर 
जैसे ही अपने चरण धरता हूँ 
‘नवजात’ हो उठता हूँ |
किलोले भरते हुये हवा से होड़ करने का जी होता है |
टप्पे खाकर उछल-उछल जाता हूँ
मै इतना कोमल इतना भारहीन हो जाता हूँ ,
कि सम्वेदना के हलकी हिलोर से भी
काँप काँप उठता हूँ |||

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जो दबे होगें
जो कुचले हुए होंगे
हर हाल में ज़िंदा रहने की
अपनी ज़िद के चलते ,
अंत में वे ही बचे होंगे
मेरी ना मानो ,
तो ‘दूब’ को देख लो ....||||
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'दूब' एक पाठशाला है
जहाँ दो बाते आसानी से सीखी जा सकती है
'उम्मीद' और 'शराफत '

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दूब के ऊपर
जब भी कोई जूते पहन चलता है
लगता है उसे थोड़ी तमीज़ भी सीख लेनी चाहिये |||||

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