4.25.2014

love (प्रेम )

प्रेम को पंथ कराल महा 
********************
(१)
ना नदी 
ना फूल 
ना चाँद 
ना हीरा
ना मोती
प्रिय तुम्हारा प्रेम
जूता है ..
जिसके भरोसे कर पाया हूँ पार
सभी खोह-खड्ड-खाई,
राह कितनी भी कठिन |
लम्बे सफ़र के बाद
जूता अब फट गया है
कुछ इधर से कुछ उधर से |
आओ ..
तुम ज़रा इसकी मरम्मत कर दो
मै ज़रा इसका सज़्दा कर लूँ ||
(२)
ना तितली
ना पराग
प्रिय ..तुम्हारा प्रेम
मधुमक्खी है ...
हँसकर डंक सहता हूँ
शहद..,
जो बदले में मिलता है |||
(३)
मन मुकुर में जम गयी है मैल ,
ओ प्रिये..
प्रेम राख से मांजो ज़रा इसको |
कि चम-चम चमचमा उठे
दिप-दिप दिपदिपा उठे
जगत विच छवि हमारी |||||

No comments:

Post a Comment